अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

         कहीं दीप तुम जला न देना

अमावसी रातें मेरी हैं
कहीं दीप तुम जला न देना
सूना है सूना रहने दो
मन का आँगन बसा न देना

अनजानी है भोर जहाँ से
ऐसा अंधा तिमिर पिया है
शंका संदेहों के क्षण को
हमने सौ सौ बार जिया है
परिचय थका समय के पथ पर
सपनों की तुम बाँह न देना
विस्मृति है विस्मृति रहने दो
वह अभिशापित चाह न देना

गंगा सूखी संकल्पों की
वचनों का गल चुका हिमालय
किसके निष्ठुर संकेतों से
डोला निष्ठा का देवालय
अर्थ हीन भटकी यात्राएँ
दूरी इसकी मिटा न देना
जीवन पतझर है रहने दो
मधु ऋतु कोई दिशा न देना

- रंजना गुप्ता

१ नवंबर २०२०
 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter