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       झिलमिलाते दीप लेकर

झिलमिलाते दीप लेकर
आ रही दीपावली फिर

स्वप्न अब साकार होंगे, स्नेह की अनुभूतियों से
और सुन्दर रौशनी की, स्वर्णमय अठखेलियों से
खिलखिलाती पल्लवित सी
छा रही दीपावली फिर

देखिए तो सुप्त मन की, भावनाओं को जगाती
विस्मरण होने न देती, याद फिर उनको कराती
है यही इसकी नियति अब
भा रही दीपावली फिर

पेटभर भोजन मिले जब, पास में धन धान्य भी हो
हो प्रचुर अवसर सुहाने, और कुछ चिंता नहीं हो
जिन्दगी के गीत सुमधुर
गा रही दीपावली फिर

आसमां में अनगिनत से, टिमटिमाते हैं सितारे
दीपमाला मध्य में ज्यों, हैं सभी आकर पधारे
भावनाओं का समंदर
ला रही दीपावली फिर

- सुरेन्द्रपाल वैद्य

१ नवंबर २०२०
 

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