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कुछ बरसाती कहमुरियाँ
 

 


इंतजार की घड़ीयाँ पूरी
चाहत भी ना रही अधूरी
उसके आते मनवा हरषा
क्या सखि साजन ?
ना सखि बरसा !


मनमौजी मर्जी से आता,
तन मन की वो प्यास बुझाता,
वो आये तब मिले सुकून,
क्या सखि साजन ?
ना मानसून !


आसमान मैं बदली छाती,
फूलके मैं कुप्पा हो जाती,
मन मचले सुन उसका आवन,
क्या सखि साजन ?
नहिं सखि 'सावन' !


आज अचानक आकर छाया,
मेरे तन मन को वो भाया,
मस्त कर गया वो वेकदरा,
क्या सखि साजन ?
नहिं सखि बदरा !


चहुँ दिश लगा-लगा कर फेरी,
अँगना आकर करी न देरी,
तुरत छा गया वह बेकदरा,
क्या सखि साजन ?
नहिं सखि बदरा !


राह चलत उसने आ घेरा,
तानी चादर किया अँधेरा,
झूम उठा मन कर कोलाहल,
क्या सखि साजन?
नहिं सखि बादल !

- हरिओम श्रीवास्तव
२८ जुलाई २०१४

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