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धरती गाती गीत
 

 

निर्निमेष अवनी तके अम्बर मेघ विहीन
फटती छाती देख कर,खेत खेत कृषिहीन

कैसे गूंजे प्रीत सुर, कैसे थिरके नेह
भूखे चूल्हे मे पके, जब अकुलाई देह

पात पात मे सुर जगे, कण-कण प्रीत प्रणीत
बादल के मंडप तले, धरती गाती गीत

छम छम छम छम नाचते, तरुवर, खग, मृग झूम
आनंदित पुलकित मगन, मचा रहे हैं धूम

बाढ़ कभी भूकंप है, और कभी अतिवृष्टि
संकेतों में ही अभी, समझाती है सृष्टि

-सीमा अग्रवाल
२८ जुलाई २०१४

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