उड़े फिर यादों के पाखी

उड़े फिर यादों के पाखी
दुःखद दिवसों के सहभागी
मिलो तुम पुनः सुभग साथी
कि जीवन तुम बिन आधा है

महावर चुभती शूलों- सी
न महकें साँसें फूलों -सी
चढ़ता नहीं मेंहदिया रंग
छूटा मुस्कानों का संग
किया अर्चन-वंदन निशि-दिन
तुम्हें ही हरदम साधा है

कभी रिमझिम थी मनभावन
बरसते दृग जलता सावन
चले आओ प्रिय मन प्यासा
टूटती जीवन की आशा
अधर की बंसी बन जाओ
परस बिन व्याकुल राधा है

पीर नयनों में अकुलाती
जलूँ मैं बिन दीपक-बाती
प्राण-प्रिय पंथ नहीं दिखता
विरह का वेग नहीं घटता
सभी ग्रह जब वश में तेरे
मिलन में क्यों यह बाधा है

- भावना तिवारी

९ अगस्त २०२०

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