कालिदास की अमर कल्पना

कालिदास की अमर कल्पना
को फिर से दोहराया मैंने
मेघों के कांधों पर रखकर
यह सन्देश पठाया मैने

कितनी बार शिकायत के स्वर
मेरे कानों से टकराये
कितने बीत गये दिन, कोई
तुम सन्देशा भेज न पाये
भेजे तो थे सन्देशे पर
रूठा मौसम का हरकारा
इसीलिये तो सन्देसों को
मिला नहीं था द्वार तुम्हारा

मौसम की हठधरमी वाली
गुत्थी को सुलझाया मैने
सावन के झूलों पर रख कर
यह सन्देश पठाया मैने

श्याम घटाओं से लिख कर के
अम्बर के नीले कागज़ पर
रिमझिम पायल की रुनझुन की
सरगम वाली मुहर लगाकर
सावन की मदमाती ऋतु से
कुछ नूतन सम्बन्ध बनाये
ताकिं कोई भी झोंका फिर से
इनको पथ से भटका पाये

अनुनय और विनय कर करके
मौसम को समझाया मैंने
मेघों के कन्धों पर रखकर
यह सन्देश पठाया मैंने

जितने भाव दामिनी द्युति से
कौंधे मन की अँगनाई में
उन सबको सज्जित कर भेजा
है बरखा की शहनाई में
नदिया की लहरों पर खिलते
बून्दों के कोमल पुष्पों से
कर श्रुन्गार, सजाया भेजा
सन्देशा मैने गन्धों से

डूब प्रेम में उसे सुनाये
सावन को उकसाया मैने
मेघों के कंधों पर रख कर
यह सन्देश पठाया मैने

- राकेश खंडेलवाल
९ अगस्त २०२०

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