इश्क आग का इक दरिया

इश्क़ आग का इक दरिया है
हमको है मालूम मगर
तेरे संग लगती है हमको
फूलों की ये कोई डगर

धड़कन और सांस की कम्पन
कोई गीत गुनगुनाये
कण कण मेरा तुम्हें समर्पण
तुमको अब ये बतलाये
आई मिलन की बेला देखो
आमंत्रण देते हैं अधर
तेरे संग लगती है हमको
फूलों की ये कोई डगर

तुमको पाकर सब कुछ पाया
कमी नहीं है जीवन में
इंद्रधनुष के रंग भर गए
मेरे दिल के आँगन में
सूरज चाँद सितारे आये
आयी रश्मि धरती पर
तेरे संग लगती है हमको
फूलों की ये कोई डगर

- श्रद्धा जैन

९ अगस्त २०२०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter