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वर्षा महोत्सव

वर्षा मंगल
संकलन

बरखा की भोर

बरखा की रिमझिम का मीठा-सा गीत,
झरनों की कलकल का मादक संगीत,
अंबुआ की डाली पर कोयल का शोर।
बरखा की भोर।।

अंबर से धरती तक पानी का जाल,
बागों में झुकी-झुकी जामुन की डाल,
लछुआ की देहरी में सटे खड़े ढोर।
बरखा की भोर।।

बादल के घूँघट से सूरज की किरण,
झाँक रही, जैसे हों हिरणी के नयन,
बाँसो के जंगल में नाच रहे मोर।
बरखा की भोर।।

-नरेंद्र दीपक
26 अगस्त 2005

  

सावन की बरसात

सागर की बूँदें
सूरज की किरणें
उड़ने लगीं आकाश में
पवन के संग

फैल गई गगन में
बादलों की टोली
खेलने लगे आपस में
आँख मिचौली

टकराकर एक दूसरे से
मचाने लगे गड़गड़ाहट
चमकने लगी फिर
बिजली की चमचमाहट

ग़ुस्से से पर्वतों ने
टोलियों को जब रोका
लगे बादल रोने
आते ही हवा का झोंका

बरसने लगे धरती पर
बन कर सावन की बरसात
नदियों का सहारा ले कर
मिल गए फिर से सागर के साथ

- दीपक ल. वाईकर
26 अगस्त 2005

 

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