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वर्षा महोत्सव

वर्षा मंगल संकलन

अंबर के भर आए नैन

 

धरती की प्यास बढ़ी
चातक की आस बढ़ी
गगन के भर आए नैन
आज सखि अंबर के
भर आए नैन

बिन पानी मुरझाए
पात-पात पियराए
फूलन से मधुर-मधुर,
मुखड़ा सब कुम्हलाए
सबकौ जियरा उचाट
फिर आए घाट-घाट
पसु-पंछी व्याकुल बेचैन
आज सखि अंबर के
भर आए नैन

ताप बढ़यो दिनकर को
सहम गई पुरवैया
तपि आई वा बूढ़े
बर की सीतल छैयाँ
नैकहू न घाम घटै
दिन काटे नाय कटै
अति छोटी होन लगी रैन
आज सखि अंबर के
भर आए नैन

घर के, पिछवारे के,
देहरी-दुवारे के
छत के चौबारे के
ताल के किनारे के
ताकि रहे दिवस-रैन
खोय बैठे चित्त-चैन
अंबर की ओर लागे नैन
आज सखि अंबर के
भर आए नैन

-सरिता शर्मा
6 सितंबर 2005

  

बारिश के दोहे

सावन सूखा माघ लू
जेठ मास बरसात।
नेताओं से हो गए
मौसम के हालात।

नदिया प्यासी रह गई
बारिश में इस बार।
जाने क्यों आया नहीं
सागर मेरे द्वार।

बद से बदतर हो गए
पल भर में हालात।
जाने क्या-क्या कह गई
मुंबई की बरसात।

आख़िर हैं किस बात के
मालिक ये संकेत।
सावन भादों मेह की
राह देखते खेत।

बादल जब पढ़ने लगे
बारिश वाले छंद।
बूँदों में आने लगा
दोहों-सा आनंद।

-संजीव गौतम
06 सितंबर 2005

सच बताना

वर्षा, सच बताना,
तुम्हें भी रहता है ना
बरसने का इंतज़ार
तुम्हें ये सच पता है
चातक है निर्भर
तुम्हारी पहली बूँद पर
नाचता है मोर भी
तुम्हारे आगमन पर
वृक्ष झूमकर कहते हैं
स्वागतम, स्वागतम
तुम्हें अच्छा लगता है
अपना ये मदिर स्वागत
तभी तो आती हो हर साल
बिना भूले, बिना नागा
छमाछम, छमाछम।

-मधुलता अरोरा
06 सितंबर 2005

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