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वर्षा महोत्सव

वर्षा मंग
संकलन

पढ़ाई और बरसात

 

जब भी मेरे मन में पढ़ाई के विचार आते थे
जाने क्यों आकाश में काले बादल छा जाते थे

मेरे थोड़ा-सा पढ़ते ही गगन मगन हो जाता था
पंख फैला नाचते मयूर मैं थककर सो जाता था

पाठयपुस्तक की पंक्तियाँ लोरियाँ मुझे सुनाती थीं
छनन छनन छन छन बारिश की बूँदें आती थीं

टर्र टर्र टर्राते मेंढक ताल तलैया भर जाते थे
रात-रात भर जाग-जाग हम चिठ्ठे खूब बनाते थे

बरखा रानी के आते ही पुष्प सभी खिल जाते थे
कैसे भी नंबर आ जाएँ हरदम जुगत लगाते थे

पूज्यनीय गुरुदेव हमारे जब परिणाम सुनाते थे
आँसुओं की धार से पलकों के बाँध टूट जाते थे

पास होने की आस में हम पुस्तक पुन: उठाते थे
फिर गगन मगन हो जाता फिर नाचने लगते मयूर
फिर से बादल छा जाते थे

-नीरज त्रिपाठी
13 सितंबर 2005

  

बरखा रानी

सावन बीत चुका है कब का
लो भादो भी बीता जाता
बरखा रानी कब आओगी?

सपनों के
काग़ज़ की कितनी नाव बनाए
बैठा हूँ मैं,
अरमानों के जाने कितने
बोझ उठाए
बैठा हूँ मैं।

आँखें मेरी
सूखे बादल सा साजन मेरा
तुम-सा निर्दय
बरस के खुद प्रिय को मेरे
क्या प्रेरित तुम
कर पाओगी?

-पराग कुमार मांदले
13 सितंबर 2003

पोखर में

टपर-टपर बूँदों ने,
दायरा बनाया पोखर में।
टर्र-टर्र मेंढक ने,
छेड़ा राग पोखर में।
झिन-झिन झनकार उठी,
तीरे पे पोखर की।
टिटहरी भी बोल उठी,
पेड़ तले पोखर की।

सुषमा श्रीवास्तव
13 सितंबर 2003

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