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वर्षा महोत्सव

वर्षा मंगल
संकलन

बादल चले गए वे

 

बना बना कर
चित्र सलोने
यह सूना आकाश सजाया
राग दिखाया
रंग दिखाया
क्षण-क्षण छवि से चित्त चुराया
बादल चले गए वे

आसमान अब
नीला-नीला
एक रंग रस श्याम सजीला
धरती पीली
हरी रसीली
शिशिर-प्रभात समुज्जल गीला
बादल चले गए वे

दो दिन दुख के
दो दिन सुख के
दुख सुख दोनो संगी जग में
कभी हास है कभी अश्रु है
जीवन नवल तरंगी जल में
बादल चले गए वे
दो दिन पाहुन जैसे रह कर

-त्रिलोचन
14 सितंबर 2005

  छपक-छपक के
 

छपक-छपक के पानी बरसे
वन मे नाचे मोर
आओ चलो मचाएँ शोर

हर खेतों में हरियाली अब लहर-लहर लहराती है
इन बागों की हरी डाल पर कोयल गीत सुनाती है
पीले मेंढक तलाबो में टर्र-टर्र तान सुनाते हैं
पशु पक्षी आँगन में मेरे ज्ञान की बात बताते हैं
हर हर हर हर बहे बयारिया मनवा देती यों झकझोर
आओ चलो मचाएँ शोर

नदिया कल-कल बहती रहती यौवन के ख़यालों में
नभ से जो अमृत रस गिरता टकराता बड़े पहाडो से
भारत देश किसानों का है चहुँ ओर हरियाली हैं
हर खेतों में फसल दिखाती उसकी शान निराली हैं
सच्चाई से डटे रहेंगे हम जाएँगे अब कहीं न छोड़
आओ चलो मचाएँ शोर

- ंभू नाथ
14 सितंबर 2005

  

मौसम की सौग़

सूखी बंजर धरा हरदम
तरसती सावन की बूँदों को
मरुथल में आज यह कैसा
निकला है ख़ास नया फ़रमान
मौसम जताए अजीब गुमान
होनेवाली है बरसात
मौसम की सौगात

शांत नील गगन था अभी
धूप गई, पसरी घनी छाया
अनजान राहें चला सावन
आसमाँ पर अपना डेरा डाल
हवा झंकारती सुर औ' ताल
बादलों की बारात
मौसम की सौग़ात

चित्र कैसे सजाए बादल ने
सुनहरी किरणों ने रंग भरे
इंद्रधनुष यहाँ आज झाँकता
लाल सतरंगी छटा लहराता
दादुर भी मेघ मल्हार गाता
बूँदें करती बात
मौसम की सौग़ात

बरस बरसी बरखा रानी
नूपुर छमछम बूँदें छहराई
सावन मास में, प्यास बुझाने
अमृतघट पिया इस धरती ने
बाने पहने हरियले झीने
मृदु भीनी मुलाक़ात
मौसम की सौग़ात

- संध्या
14 सितंबर 2005

बिरहन बदली

फिर बिरहन बदली है मचली
फिर बरसे उसके अश्रु घन
फिर धड़कन कुछ तेज़ हो चली
फिर काँपा धरती का तन मन
फिर नन्हीं बूँदों के तारे
हिय मेरा ललचाने लगे
मन आँगन में आशाओं की
बंद कली चटकाने लगे
फिर कुछ आसव छलक गई है
यौवन के पैमाने से
मुझको संगी बना चले हैं
कुछ सपने अंजाने से
दुनिया कहती है आँसू की
नदियाँ खारी होती हैं
फिर क्यों मीठे मेघा तेरी
आँखों के पनीले मोती हैं

-दीपिका ओझल
14 सितंबर 2005

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