उत्सव वसंत का 
              - त्रिलोचना कौर

 

बजवा दो
आकाश में दुंदुभि
शीत की विदाई की करो तैयारी

बसंत का करो शृंगार
तितलियों से रंग लो उधार

सरसों के फूल
तुम धरा के द्वार पर
बनाओ रंगोली
टहनियों तुम नई कोंपलों से
भरो अपनी झोली

फूलों से कहो महक बिखराएँ
कलियों में भर दो उमंग

हवाओं से कहो
थिरको लहरों के संग
मौसम तुम गाओ फाग
अलि से कहो छेड़े भ्रमर राग

बदलियों की खिड़कियों से
निकल रहा है सूरज
पहने तीखा सुनहरा पीला पाग

धूप तुम करो द्वाराचार
लगाओ माथे पर
भोर का रोली अक्षत

गिर रहीं आँच की पालकी से
शीत बूँदों की यादें
आँचल में बाँधूँ
स्नेह के बौर से अंजुर भर-भर दूँ आशीष
"कार्तिक" माह को गोद लिए
फिर आना शीत !!!

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