मन में बसंत
              - परमजीत कौर 'रीत'

 

किसलय लें अँगड़ाइयाँ, पुष्प पढ़ें शृंगार
पी वसंत-रस माधुरी, झूम रहा संसार

पंख बिना उड़ने लगी, पहन पीत वह चीर
कानों में ऋतु-शीत के, क्या कह गया समीर

सुरभित हैं अमराइयाँ, मीठी हुई बयार
कोयल बिरहा कूक से, छेड़ रही मन-तार

गिन-गिन बीते दिवस तब, सरसों आई गोद
ओढ पीयरी माँ धरा, निरखे होकर मोद

पीत-वर्ण जोड़ा पहन, पगड़ी फूल अनंत
ग्रीष्म-वधू को ब्याहने, देखो चला बसंत

जंगल में मंगल लगे, तब जीवन पर्यंत
सभी ओर आनंद हो, मन में अगर बसंत

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