ओढ़ बसंती प्रीत
              - ओमप्रकाश नौटियाल

 

हर ऋतु को परखा है लेकिन
कोई न तुम-सा मीत
मंजुल पुष्प खिले हों जैसे
ओढ़ बसंती प्रीत

सर्दी सम क्रूर नहीं
संत सा सहज स्वभाव
अगन नहीं गर्मी की
तपता हो ज्यों अलाव
लाजवंती सुकोमल
गुणवंत अति विनीत
ओढ़ बसंती प्रीत

झड़े सभी पीत पात
रंगों से खिले बाग
अलसायी प्रकृति जगी
गाती बसंती राग
शीत प्रकोप से निकल
विरह पल गये बीत
ओढ़ बसंती प्रीत

मलय में मादक महक
जीव जन्तु रहे चहक
बसंती लावण्य में
प्रेमी भी रहे बहक
अलि अब गुनगुना रहे
जीवंत प्रणय गीत
ओढ़ बसंती प्रीत

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