विजयदशमी की कविताओं का संकलन
 

 

रोम रोम में राम

रोम-रोम में बसा जो एक राम नाम है
भोर राम नाम है शाम राम राम है

राम ही अनादि है
राम ही अनन्त है
जीवन है पतझर
वो शाश्वत बसन्त है
प्राण तृषित धरती से राम मेघ श्याम है

श्याम गीत प्रेम का है
राम नीति-नीति है
आचरण का व्याकरण है
नेह की प्रदीप्ति है
हम सब अधूरे हैं राम पूर्ण काम है

जड़ को चेतन करता
चेतन की चेतना
सुख को है सुखदाता
वेदना को वेदना
श्वासों में झंकृत स्वर ललित है ललाम है
भोर राम नाम है शाम राम राम है

-डा. मधु प्रधान


 

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