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                      |  |   
						गुड़ की 
						गुझिया   |  
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                                              |  | गुड़ की गुझिया पिघल गयी है
 फूटी रस की धार
 
 इनकी गुझिया, उनकी गुझिया
 फगुनाया मन सबकी गुझिया
 चारा 'कल' की
 लगे गड़ासा,
 चुन्नट जैसी धार
 
 नया अन्न बौराया फूला
 बेपर्दा मन, पर्दा भूला
 रंग, अंग में
 ताप अनूठा
 पुरवा की भी मार
 
 उल्लासों के उत्सव बोये
 फसलें काटीं, मन में खोये
 मुरझाये फूलों में
 हँसती
 रंगों की बौछार
 
 - शीला पांडे
 १ मार्च २०२१
 
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