नाम जलेबी का

 

 
कैसे गाऊँ गीत हे! मेरे राम, जलेबी का
होता है जब सारा टेढ़ा काम जलेबी का

शादी, मेले, त्योहारों में नाम जलेबी का
चर्चा होता खूब सुबह से शाम जलेबी का

गाहक से ही तय होता जब दाम जलेबी का
नाहक ही क्यों नाम रहे बदनाम जलेबी का

अष्टावक्री काया भीतर भी होती रसधार
'जैसा जो है कबूल' यही पैगाम जलेबी का

आज भले ही मिष्ठान्नों ने घेर लिया बाज़ार
कभी हाट मेला था सारा धाम जलेबी का

सदियों से आकंठ चाशनी में डूबी लेकिन
दूर हुआ न बांकापन इल्ज़ाम जलेबी का

'रीत' ज़रा भी वक्त लगा न टूट पड़े जब लोग
बातों-बातों में हुआ काम तमाम जलेबी का

- परमजीत कौर 'रीत'
१ अप्रैल २०२२

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