ललचा रहे हो देख के

 

 
ललचा रहे हो देख के क्यों यार जलेबी
खा लो हमारे साथ में दो चार जलेबी

बीमार है वो शख्स बहुत दिन से शुगर से
खायेगा कौन मुँह से वो बीमार जलेबी

कुटिया फकीर की हो महल हो कि हो झुग्गी
जाती कहाँ नहीं है ये रसदार जलेबी

बाजार में जलेबी की है पूछ परख खूब
सच पूछिये है रौनके बाजार जलेबी

जितनी मिठाइयाँ हैं सभी हैं तेरी दासी
तू ही असल में ताज की हकदार जलेबी

शीरी ज़बान हो यहाँ सबकी मेरी जैसी
संदेश सबको देती है हर बार जलेबी

आई तू मेरे देश में ईरान से चलकर
सौ बार दिल से तेरा है आभार जलेबी

- राम अवध विश्वकर्मा
१ अप्रैल २०२२

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