|  | चक्रव्यूह ये रस भरा, जो चख ले इक बारआकर्षण है मधुर अति, खाए बारंबार
 
 पोहा, दूध, दही सहित, इसके साथ अनेक
 सुबह शाम मध्याह्न हो, स्वाद सदा अतिरेक
 
 मोटी,पतली कुरकुरी, देख खिले मुस्कान
 लोग खड़े हों पंक्ति में, दिखती जहाँ दुकान
 
 पकवानों के संग जब, सजे जलेबी थाल
 जाति धर्म के भेद को, भूलें सभी कमाल
 
 पूरब पश्चिम दखन हो, उत्तर भारत देश
 सबको अति प्रिय ये लगे, करें अतिथि को पेश
 
 मधु रस अंतस में भरा, बूँद बूँद में स्वाद
 उदर भरे पर मन नहीं, और मिले फरियाद
 
 घर घर बनी जलेबियाँ, गृहणी करें प्रयास
 बीमारी आतंक से, हो कोई न उदास
 
 सीख जलेबी से मिले, जीवन है ज्यों चक्र
 मधुर हृदय के भाव से, बदलेंगे पथ वक्र
 
 - ज्योतिर्मयी पंत
 १ अप्रैल २०२२
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