देसी औषध

 

 

टेढ़ी-मेढ़ी गोल-सी, चढ़े चाशनी लाल
टपके मुँह से लार है, देख जलेबी थाल

लाया तुर्की है यहाँ, गाता है इतिहास
रची, बसी भारत रही, देती गजब मिठास

स्वाद जलेबी का गजब, करे जगत गुणगान
गाँव, शहर की शान यह, समरस की पहचान

देसी औषध यह बनी, खा लो मूली संग
बवासीर इससे मिटे, होती दुनिया दंग

देह जलेबी हो गयी, रसना भरे मिठास
तरह-तरह के रूप में, रचे छंद, इतिहास

डॉ. मंजु गुप्ता
१ अप्रैल २०२२

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