सरस जलेबी

 

 
अलबेली है सरस जलेबी
खिलवाये फेरे पर फेरे

मीठा यों घोले जीवन में
धारा उतरे तन से मन में
कहते सब कितनी है टेढ़ी
रहे चटोरे उसको घेरे

गर्म-गर्म हैं छनती बातें
खोलें छोटी-छोटी यादें
बिसरा सा है नुक्कड़ कोई
लगते थे खुशियों के डेरे

टपक रहा है मधुर-मधुर रस
जीवन भी हो मधुर-मधुर बस
मिले सुगम या दुर्गम राहें
माधुर्य रहे जीवन मेरे

- दिव्या राजेश्वरी
१ अप्रैल २०२२

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