मुँह में पानी

 

 
किसने नाम लिया आया मुँह में पानी
आँखों में छाये हैं
चित्र जलेबी के

बचपन की यादें, यादें तरुणाई की
उमड़ रहीं हैं यादें मित्र सखाओं की
और गली के बाहर से आती खुशबू
शहद पगी मीठी मदमस्त हवाओं की
हाट और बाजार चौक-चौपालों पर
चर्चे हैं जीवंत
विचित्र जलेबी के

आम-खास या गाँवों, कस्बों, मेलों में
हो गरीब या हो अमीर सबकी प्यारी
लड्डू और जलेबी महानगर तक में
जमे हुए हैं लेकर अपनी खुद्दारी
चख लेने को बार-बार मन ललचाए
बन जाते हैं सारे
मित्र जलेबी के

युग बदला, युगधारा बदली दुनिया की
हर बहाव को सहकर है सबके मन में
नाप दिया भूगोल स्वाद के धागे से
बाँध दिया सबको अपने सम्मोहन में
नहीं गुंजलक कोई मिली स्वभावों की
मिलते हैं सम्बन्ध
पवित्र जलेबी के

घुले जिन्दगी में मिठास कुछ स्वाभाविक
मीठी-मीठी तरल चाशनी में डूबी
और जलेबी दिल से दिल तक पहुचाये
प्यार और सौहार्द चुआती हर खूबी
नफरत का कडुआपन छोड मधुरता को
अपनायें सब ही
सुचरित्र जलेबी के

- जगदीश पंकज
१ अप्रैल २०२२

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