खाओ जलेबी

 

 
शौक से खाओ जलेबी
जब करे मन खूब जी भर

ग्रीष्म ऋतु या सर्दियाँ हो
बारिशें हो छम छमाछम
सामने आए जलेबी
रुक वहीं जाते सहज हम
खूब खाते मुस्कुराते
हर्ष पूरित भाव लेकर

खूब बढ़ते जा रहे पग
स्वाद की है चाह अनुपम
चाशनी मृदु भावना की
घुल रही ज्यों स्नेह सरगम
एक अनुभूति अनूठी
उड़ रहे ज्यों आसमां पर

पर्व उत्सव हो कहीं भी
ठाठ से रहती जलेबी
भाव समरसता जगाती
हो अमीरी या गरीबी
हैं बहुत मिष्ठान्न जग में
किंतु यह सर्वत्र प्रियकर

- सुरेन्द्रपाल वैद्य
१ अप्रैल २०२२

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