चाय हो जाए     

 
उदास शाम है इक प्याली चाय हो जाए
मिटे थकान दिमागी कि चाय हो जाए

तमाम काम किये दिन गया मशक़्क़त में
मिलेगी ताज़गी थोड़ी सी चाय हो जाए

तुम्हारी याद का छाया है अब्र दर्दीला
हटाओ हिज़्र कि आओ जी चाय हो जाए

चढ़ी तपेली कि इसरार में उबलता मन
करार-ओ-कौल की पत्ती की चाय हो जाए

भरे शबाब के प्यालों से दिल मचलते हैं
लबों से इश्क़ की ले चुस्की चाय हो जाए

सजे रकाबी में बिस्किट गरम-गरम भजिये
बरसती शाम में अदरख की चाय हो जाए

निकलती भाप कपों से न हो कहीं ठण्डी
गुजरती उम्र में 'हरि' फीकी चाय हो जाए

- हरिवल्लभ शर्मा 'हरि'
१ जुलाई २०२०

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