आओ बैठो चाय पिलाएँ
 

 
चले आ रहे उमड़-घुमड़कर
काले बादल शोर मचाएँ
गर्जन-तर्जन कोलाहल में
आओ बैठो चाय पिलाएँ

बरबस लगा बरसने पानी
टपक रहे हैं छप्पर-छानी
मानसून सुनता ही कब है
कुछ कहना-सुनना बेमानी
मौसम कहता है मौसम है
एक साथ दो कप पी जाएँ
आओ बैठो चाय पिलाएँ

मिट्टी की सोंधी सी खुशबू
अंतर्मन को विह्वल करती
एक-एक कर बूँद मचलकर
धरती पर अपना पग धरती
टकराकर कण-कण से बिखरीं
बूँदें रिमझिम गीत सुनाएँ
आओ बैठो चाय पिलाएँ

भीतर आयी बहती-बहती
भीगी हुई हवा भी कहती
रखे हुए हैं बेसन थोड़े
अब तो गरमा-गरम पकौड़े
दोनों मिलकर चलो बनाएँ
आओ बैठो चाय पिलाएँ

- कृष्ण कुमार तिवारी
१ जुलाई २०२०

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