चाय संस्कृति

 

 
परिवर्तन का घना साथ
प्रभु राची इस सृष्टि से
बदली नहीं चाय संस्कृति
शीत, ग्रीष्म, जलवृष्टि से

बूँदों का हो मधुर गीत
या मेघ गरजते पावस में
द्दश्य निहारें खिडकी से या
मारें गप्पे आपस में
संग चाय की चलें चुस्कीयाँ
तृप्त करें संतुष्टि से

फलित हुई हैं प्रेम कथाएँ
इसी चाय की प्याली से
जीवन संगी बहुतेरे भी
मिले चाय की प्याली से
समझौते भी रहे अधूरे
चाय बिना संसृष्टि से

सर्व धर्म समभाव रही है
चाय धर्म संप्रदाय की
शाला, पूजा स्थल अथवा
पालिका, निगम, निकाय की
चाह सभा समिति की, किंतु
दूर सियासी दृष्टि से

-ओम प्रकाश नौटियाल
१ जुलाई २०२०

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