एक शाम चाय पर

 
इक शाम जब उन्होंने हमें चाय पर बुलाया
कितने हसीन लम्हों को
मेज पर सजाया

महकी हुई फिजायें बरसात हो रही थी
खुशबू हमारे प्यासे मन को डुबो रही थी
अहसास की डगर पर
हमने कदम बढ़ाया

नजरें मिलीं सनम से गपशप बढ़ी हमारी
ऐसा लगा कि पूरी हसरत हुई हमारी
जब प्याज के पकौड़ों
को प्यार से खिलाया

अनगिन खयाल मन में उड़ने लगे हमारे
बेरंग जिन्दगी के रंगीन थे नजारे
आनंद चुस्कियों का
लेकर मजा उड़ाया

दोनों को स्वाद भाया अदरक इलायची का
गम भाप बन उड़े थे मौसम हुआ खुशी का
जब एक दूसरे को
हँसकर गले लगाया

- पुष्पलता शर्मा
१ जुलाई २०२०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter