हम सब का इतवार

 
एक चाय के इंतज़ार में
बैठा है अख़बार

खोज रही हैं कलियाँ कब से
प्यारा-सा स्पर्श
कैरी के पत्ते रचने को
व्याकुल स्वाद-विमर्श

धीमे-धीमे बीत रहा है
हम सब का इतवार

खिड़की के पर्दां से तय थी
आज तुम्हारी बात
मिलने को आतुर है छत पर
तुमसे नवल प्रभात

ताक रही हैं पंथ तुम्हारा
आँगन छत दीवार

इस घर के कोने-कोने में
पाया तुमने मित्र
पर मेरी इन आँखों में भी
जीवित एक चरित्र

मेरी छुट्टी का भी तुमपर
थोड़ा है अधिकार

- राहुल शिवाय
१ जुलाई २०२०

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