चाय के साथ जिंदगी

 
बहुत दिनों बाद
गुलदस्ते में सजाए
फूलों के दल ताज़ा रजनीगंधा

मन की मेज पर बिछाई है क्लॉथ
तितलियों वाली, भोर की किरण संग
मन को दे ताज़गी ग्रीन टी निराली,
साथ साथ चाय के खुशियों के पल
बिताएँगे सुगंधा

चाय की केतली से ठहाके चालेंगे
हरी इलायची सी यादों को पालेंगे
चुगली के अदरख कूट कूट डालेंगे
बतकही के बीच में पाने को हल
उचकाएँगे कंधा

कुल्हड़ की चाय में जी लेंगे गाँव को
मलाईदार दूध में गइया के पाँव को
केनोपी में बैठकर बरगद की छाँव को
अपनों के बीच होगी सोंधी पहल
अच्छा है धंधा

जमी हुई पपड़ी तर्जनी से फेंकना
चाय के धुएँ से आँखों को सेंकना
चश्मे की भाप से धुंधलाया देखना
उम्र की चम्मच में चीनी की चुहल
गोरखधंधा

आया है चाय पर दीदी का न्योता
चटखारे साथ का सोच सोच नाच रहे
मिलेगा ब्रेड रोल दीदी के हाथ का
शशि भी जाने को रही है मचल
प्रीत का फंदा

- ऋता शेखर 'मधु
१ जुलाई २०२०

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