प्याली चाय वाली

 

 
समय कठिन पसरा कमरे में
मन ऊबा-सा हम बेबस-से
मगर साथ देती है प्याली
चाय वाली!

अर्थ मौन के जबसे बदले
सहम गया विश्वास समय का
अखबारों के भी जीवन में
बदल रहा विन्यास विषय का
बाहर का जग पड़ा निठल्ला
सोच रहा छुप दीवारों में -
काश धधकता सूरज आये
और बदल दे रूप उदय का

थकी हुई किस्मत के आगे
बदहवास सबकी लाचारी
थाम-थाम लेती है प्याली
चाय वाली

एक-एक कर याद विगत की
क्षण-दिन-वार लहर बन आए
क्या वे फुग्गे-फुग्गे दिन थे
गुने मौन ही किसे सुनाए
बाहर से अब किसको आना
अंदर से क्यों टोह रहा मन
भिड़काये पल्लों की साँकल
ऐसे में अब कौन बजाए?

कोर नयन की पटवन कर दे
नाम नहीं उगता होठों पर
उसे मगर सेती है प्याली
चाय वाली

जमे हुए मुखड़े का पत्थर
अनगढ़ औंधा झुका हुआ-सा
तिस पर भटकी आँखें गिनतीं
मनके-पासे खेल जुआ-सा
सिहर-सिहर कर भाप उमगती
धुँधला देती है कैलेण्डर
और गूँजता अंतर्मन में
हर कुछ बीता जो कड़ुआ-सा

यंत्र बने होठों की लरजन
लगी भाँपने मन की उलझन
तभी थपक देती है प्याली
चाय वाली

- सौरभ पांडेय
१ जुलाई २०२०

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