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						बहुत दिनों 
						के बाद    | 
                      
                       
                      
                      
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पी सबने फिर चाय साथ में 
बहुत दिनों के बाद 
 
प्रमुदित होकर फेर रही है 
अम्मा सर पर हाथ 
बेटे लौटें हैं विदेश से 
परिवारों के साथ। 
हँसी-ठिठोली गूँज रही है 
घर लगता आबाद 
 
बापू का मन वृन्दावन-सा 
बच्चों से कर मेल 
खेल रहा है कैरम-लूडो 
चला रहा है रेल 
हर दिन गुजरे बस ऐसे ही, 
उनकी है फरियाद 
 
हर कोने की छटा अनोखी 
चौखट छेड़े राग 
बहुओं के यों आ जाने से 
जगे गेह के भाग 
मानो कल तक क़ैदी थे सब 
और आज आज़ाद 
 
- डॉ. शैलेश गुप्त 'वीर' 
१ जुलाई २०२० 
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