चुस्की के संग घोलें          

 
आज झमाझम पानी बरसा
भीगा घोर इलाका
चाय पकौड़े थाली में धर
लाये रामू काका

यहाँ-वहाँ सब खुशबू पसरी
भीतर से महकाये
पापा मम्मी भइया मौसी
बच्चे भी घिर छाये

प्लेटों में आ सजीं चटनियाँ
सबने प्याली ताका

बाबू जी कनखी से देखे
फीकी वाली चाय कहाँ है ?
ये लो! यहीं छुपी थी प्याली!
रख्खा बाजू पास जहाँ है

भाभी ने आवाज लगायी
' तुम भी ले लो काका'!

अदरक तुलसी लौंग इलायची
मह-मह इत-उत डोलें
कानों में मिसरी सी बातें
चुस्की के सँग घोलें

अधरों पर मुस्कान ठहाके
गूँजे सारा नाका

सोने सी आभा बिखराती
लम्हों में घुल जाती
चाय सदा हँसती-मुस्काती
जीवन से बतियाती

खुशियों में परवान चढ़ी तो
दुःख में पल्लू ढाँका

- शीला पांडे
१ जुलाई २०२०

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