यह अखबार छोड़ो  
 

 
मुआ यह अखबार छोड़ो
यह खिला कचनार देखो

जागते ही बैठ जाते
आँख पर ऐनक चढ़ाके
भूल जाते दीन-दुनिया
दृष्टि खबरों पर गड़ाके
क्‍या धरा
गुजरे-गये में
डोलती मनुहार देखो

चाय बाजू में धरी है
गर्म है प्‍याली भरी है
पत्र-तुलसी मिर्च काली
सोंठ-मिसरी सब पड़ी है
जो नहीं
मिलता खरीदे
घुला वह भी प्‍यार देखो

देखना, वैसे न जैसे
देखते बाजार वाले
भावनाएँ सतयुगी
थापी हुई मन के शिवाले
रूप देखो
या न देखो
रूप के उस पार देखो।

- श्यामनारायण श्रीवास्तव श्याम
१ जुलाई २०२०

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