कोरोना का डर है

 

 
कोरोना का डर है लेकिन
डर-सी कोई बात नहीं

धूल, धुआँ, आँधी, कोलाहल
ये काले-काले बादल
जूझ रहे जो बड़े साहसी
युगों-युगों का लेकर बल
इस विपदा का प्रश्न कठिन, हल
अब तक कुछ भी ज्ञात नहीं

लोग घरों से निकल रहे हैं
सड़कों पर, फुटपाथों पर
एक भरोसा खुद पर दूजा
मालिक तेरे हाथों पर
जीत न पाए हों वे अब तक
ऐसी कोई मात नहीं

कई तनावों से गुजरे वे
लहरों से भी टकराए
तोड़ दिया है चट्टानों को
शिखरों को छूकर आए
सूरज निकलेगा पूरब में
होगी फिर से प्रात वही

- अवनीश सिंह चौहान
१ जून २०२१

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