छँटेगा यह अंधेरा भी

 

 
छँटेगा निश्चित छँटेगा यह अंधेरा भी
अभी तो मुँह झाँप सोया है
सवेरा भी

गरीबी से हारकर घर छोड़ आए थे
गांव के सीवान से मुह मोड़ आए थे
था रहा ललकार
सपनों का उटेरा भी

था न पैसा मगर हरियाली नहीं कम थी
प्यार के जल में घुली लाली नहीं कम थी
था कसा सम्बंध का
गज्झिन लभेरा भी

दी जिन्हें समृद्धि अपना पसीना बोकर
मिली उनके पाँव से दुत्कार औ' ठोकर
क्या न है इस मुल्क पर
हक तनिक मेरा भी

आइना अब दिखाया है लॉकडाउन ने
चले नन्हें हाथ से थे चाँद को छूने
अब रिझाएगा न
जादूगर सपेरा भी

- नचिकेता
१ जून २०२१
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