दिखता कुछ तो अति सुंदर है

 

 
माना कि मन में कुछ डर है
लेकिन धरती आसमान में
दिखता कुछ तो अति सुंदर है

सुबह-सुबह कोयल की कू कू
महानगर में अचरज-सी थी
सच कहता हूँ बालकनी में
आकर गौरैया बैठी थी
बीचो-बीच शहर में जैसे
मेरे बचपन वाला घर है

नदिया का जल साफ हो गया
वायु प्रदूषण हाफ हो गया
दुर्घटना में मरने वालों
का भी बेहतर ग्राफ हो गया
स्याह दिखाई देता था जो
दिखता वह नीला अंबर है

सुबह रही ना हड़बड़ वाली
चलते-चलते वाली थाली
बैठ पिता माता के संग अब
पीते गर्म चाय की प्याली
बेटे के घर में रहने से भ्रम होता
वह गया सुधर है

- ओम प्रकाश तिवारी
१ जून २०२१
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