दौड़ता केवल समय

 

 
दौड़ता केवल समय अब
थम गई है गति हमारी

चाँद तारे मुट्ठियों में बाँधने हम तो चले थे
बन विधाता सकल संसृति साधने हम तो चले थे
मान लो ब्रह्मांड से हम आज फिर बौने हुए हैं
है समय अब सँभल जाएँ
मिट रही है सृष्टि सारी

दौड़ अंधी अस्त्र शस्त्रों को जुटायें और कब तक
दे रही जीवन प्रकृति जो नित मिटायें और कब तक
जान लें इस ज़िन्दगी से खूबसूरत कुछ नहीं है
अब दिलों को जीतना हो
प्राथमिकताएँ तुम्हारी

पीढ़ियाँ विस्मित हुईं इतिहास ने जब भी लिखा है
इक अजाने शत्रु से फिर हारता यह जग दिखा है
गलतियों पर वे हँसेंगे या कि शायद रोएंगे भी
बंद होना चाहिए प्रतियोगिता
विध्वंसकारी

है यही चिंता कि अब दुनिया बदलती जा रही है
दूरियाँ विष बेल सी मन में पसरती जा रही है
औपचारिक हों न इतने हम कि रिश्ते भूल जाएँ
अब गले मिलने की परिपाटी
विदा ले ले न प्यारी

- सीमा हरि शर्मा
१ जून २०२१

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