हम कलाकार

 

 
किससे अपना दर्द कहें अब कहाँ पे जाएँ
कलाकार हम अपना दुखड़ा
किसे सुनाएँ

खबर नहीं थी इक दिन ऐसा भी आएगा
खुशियों के लमहों पर भी संकट छाएगा
हमने सबके सुख में सबका साथ निभाया
अपनी कला से सब लोगों का मन बहलाया
मूक हुई जो वाणी कैसे इसे जगाएँ
चहल पहल जितनी थी
कैसे वापस लाएँ

बंद हुए जलसे जिनसे हम सब पलते थे
इनके चलने से ही अपने घर चलते थे
साज हमारे घर के कोने में रोते हैं
कभी कभी तो हम सब भूखे ही सोते हैं
वाह वाह और वंसमोर की ध्वनि सुन पाएँ
शोर तालियों के फिर
कानों में पड़ जाएँ

ऐसे में अब काम भी दूजा कहाँ करेंगे
वक्त ने जो भी घाव दिये वो कहाँ भरेंगे
घर वालों के चहरे देख के दिल रोता है
कितना साहस रक्खें दुख तो दुख होता है
यही तमन्ना है फिर से वो दिन आ जाएँ
फिर से गीतों गज़लों से
हम रस बरसाएँ

- शरद तैलंग
१ जून २०२१

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