वक्त को गाओ

 

 
तार भी जब चोट खाकर
गुनगुनाते हैं
हम किसी भी वायरस को
भूल जाते हैं

भूल जाते हैं
न कुछ भी याद रहता है
दर्द से भी दिल हमारा
शाद रहता है
हम अंधेरे रास्तों पर
जगमगाते हैं

जब कभी बेचैन हो
तुम वक्त को गाओ
घड़ी भर को ही सही
कुछ चैन पा जाओ
हमें देखो गुलमोहर से
मुस्कुराते हैं

चल रहा जो सिलसिला
तो कुछ थमे भी तो
भूख लगती प्यास लगती
है हमें भी तो
धीर धरकर सब्र का
पौधा उगाते हैं

चिलचिलाती धूप में भी
छाँव का सच है
दूर जिससे हो गए उस
गाँव का सच है
हम कि प्यासी भूमि को
पानी पिलाते हैं

हम कि घर में हैं
सफर में सोच है अपनी
चोट अपनी है कि
गहरी मोच है अपनी
जख्म पर हम गीत का
मरहम लगाते हैं

- यश मालवीय
१ जून २०२१
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