डर लिखता है

 

 
एक अजब सा डर लिखता है
रोज नया अध्याय

जग के सम्मुख खड़ा हुआ है जीवन का संकट
जिसे देख विकराल हो रही पल पल घबराहट
कैसे सुलझे उलझी गुत्थी
सभी विवश असहाय

सड़कों पर गलियों में घर में चुप्पी पसरी है
कौन करे महसूस सभी की पीड़ा गहरी है
सूझ रहा है नहीं किसी को
कुछ भी कहीं उपाय

आने वाले कल की चिंता व्याकुल करती है
अनदेखी अनजानी दहशत मन में भरती है
कौन भला छल भरे समय का
समझ सका अभिप्राय

- योगेन्द्र वर्मा व्योम
१ जून २०२१
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