मातृभाषा के प्रति


गूँथे सबको हार में

गूँथे सबको हार में, तेरे रूप अपार ।
हिंदी आँचल में भरे, जैसे माँ का प्यार ।।

शब्दों के मोती मिले, भाव भरा संसार ।
जननी संस्कृत से सदा, संयोजित है तार ।।

मन वीणा में वास हो, दिशि दिशि गुंजित गीत ।
बरसे रस हिंदी सदा, बजे मधुर संगीत ।।

उड़ने को आकाश है, डूबे गहरा नीर ।
भक्ति, प्रेम, परिहास है, हिंदी मन की पीर ।।

अभिव्यक्ति के संग सखि, पाया है विस्तार ।
सहज, सरल हिंदी हुई,वाणी का श्रृंगार ।।

चली प्रगति के पंथ पर, हुई बहुत अनमोल ।
कम्प्यूटर पर सज गये, मोती जैसे बोल ।।

पूरब से पश्चिम चले, हिंदी मधुर बयार ।
उत्तर दक्षिण हिन्द हो, समाहार, बलिहार ।।

--ज्योत्स्ना शर्मा

१० सितंबर २०१२

 

 

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