मातृभाषा के प्रति


प्रतिदिन हिन्दी दिवस

र सच्चे हिन्दुस्तानी के मन की ये अभिलाषा हो -
प्रतिदिन हिन्दी दिवस मान कर
व्यवहृत हिन्दी भाषा हो

हिन्दी, जिसे
सँवारा तुलसी ने अपनी चौपाई से
जिसे सूर ने अपनाया, जो निखरी मीरा बाई से
ध्वज वाहक रहीम थे जिसके, आराधक रसखान मिले
भारतेंदु औ बापू ने चाहा
जिसको सम्मान मिले

जिसको जो चाहे अपनाले, होती नही निराशा हो
प्रतिदिन हिन्दी दिवस मान कर
व्यवहृत हिन्दी भाषा हो

छोटा सा जापान,
न जग में उसका कोई सानी है
वहां व्यक्ति भी जापानी है - भाषा भी जापानी है
हिन्दी का ध्वज यदि सचमुच फहराना चाहो अम्बर में
प्रतिदिन हिन्दी-दिवस मानना होगा,
न कि सितम्बर में

उतना मोल बढे हीरे का, जितना अधिक तराशा हो
प्रतिदिन हिन्दी दिवस मान कर
व्यवहृत हिन्दी भाषा हो

- राजेश राज

१० सितंबर २०१२

 

 

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