मेरी प्यारी हिंदी


भारत माँ की राज दुलारी
मेरी प्यारी सी यह हिंदी।
मर्यादा में गंगा सी है
यमुना सी है कल कल बहती

संविधान के अनुच्छेद में
पाया सिंहासन था ऊँचा
गद्दारी की कुछ लोगों ने
सरे आम हिंदी को बेचा

पापी अपने पाप न धोये
फिर भी उसको कुछ ना कहती

जितने घाव लगे है तन पर
उससे गहरे कोमल मन पर
ढोल गँवारों की भाषा कह
सारा दोष लगाया इस पर

अपने घर की ही चौखट पर
नाम दूसरा कैसे लिखती?

कोटि जनों की भाषा तब भी
कूटनीति के फंदे कसते
सरकारी खेलों में देखे
हिंदी की बिंदी के बस्ते

आखर-आखर पीर बहाती
पन्ना पन्ना विगलित करती!

- रंजना गुप्ता    
१ सितंबर २०१५

 

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