मातृभाषा के प्रति


हिंदी प्रातः श्लोक है

हिंदी भारत भूमि के, जनगण को वरदान ।
हिंदी से ही हिंद का, संभव है उत्थान ।।
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संस्कृत की पौत्री प्रखर, प्राकृत-पुत्री शिष्ट ।
उर्दू की प्रेमिल बहिन, हिंदी परम विशिष्ट ।।
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हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल ।
'सलिल' संस्कृत सान दे, पूड़ी बने कमाल ।।
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ईंट बनें सब बोलियाँ, गारा भाषा नम्य ।
भवन भव्य है हिंद का, हिंदी बसी प्रणम्य।।
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संस्कृत, पाली, प्राकृत, हिंदी उर्दू पाँच ।
भाषा-बोली अन्य हैं, स्नेहिल बहने साँच ।।
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सब भाषाएँ-बोलियाँ, सरस्वती के रूप ।
स्नेह् पले, साहित्य हो, सार्थक सरस अनूप ।।
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भाषा-बोली श्रेष्ठ हर, त्याज्य न कोई हेय ।
सबसे सबको स्नेह ही, हो जीवन का ध्येय ।।
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उपवन में कलरव करें, पंछी नित्य अनेक ।
भाषाएँ हैं अलग पर, पलता स्नेह-विवेक ।।
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भाषा बोलें कोई भी, किन्तु बोलिए शुद्ध ।
दिल से दिल तक जा सके, बनकर प्रेम प्रबुद्ध ।।
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मौसी-चाची ले नहीं, सकतीं माँ का स्थान ।
सिर-आँखों पर बिठा पर, उनको माँ मत मान।।
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ज्ञान गगन में सोहती, हिंदी बनकर सूर्य ।
जनहित के संघर्ष में, है रणभेरी तूर्य ।।
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हिंदी सजती भाल पे, भारत माँ के भव्य ।
गौरव गाथा राष्ट्र की, जनवाणी यह दिव्य ।।
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हिंदी भाषा-व्याकरण, है सटीक अरु शुद्ध ।
कर सटीक अभिव्यक्तियाँ, पुजते रहे प्रबुद्ध ।।
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हिंदी सबके माँ बसी, राजा प्रजा फकीर ।
केशव देव रहीम घन, तुलसी सूर कबीर ।।
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हिंदी प्रातः श्लोक है, दोपहरी में गीत ।
संध्या वंदन-प्रार्थना, रात्रि प्रिया की प्रीत ।।

आचार्य संजीव सलिल
१२ सितंबर २०११

 

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