होली
है
!!

 

रंग उड़ाती आई होली


पहली किरण को देखकर
स्मित अधरों पर यों बोली
उषा की लाली में डूबी
रंग उड़ाती आई होली

सजधज कर आएँगे साथी
आँगन भर सजती रंगोली
नाचेंगे और गाएँगे हम
मधुर स्वरों से भरेगी झोली

याद आएँगे प्रियजन सारे
दूर देस के सभी नज़ारे
कब फिर दिन आए दोबारा
बाबुल का घर और हमजोली

नीलम जैन

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter