नये साल

 

 

 

नये साल तुम सच-सच बोलो
क्या-क्या लेकर आये हो

भूखों की रोटी ले आये
या चिड़ियों का दाना
जिनके पास न अपना घर है
उनको एक ठिकाना
घुप्प अँधेरा घिरा भगाने
का उजियारा लाये हो

शोषित होते बीत गयी हैं
जिनकी कितनी सदियाँ
क्या लाये हो उनके हिस्से-
की थोड़ी सी खुशियाँ
क्या नंगे तन ढकने को कुछ
कपड़े-लत्ते लाये हो

गूँगे,बहरे, अंधों को क्या
तुमने दिये सहारा
उनकी विपदायें हर लीं क्या
उनका भाग्य सवाँरा

दुविधाग्रस्त जनों की खातिर
क्या सुविधायें लाये हो

- योगेंद्र प्रताप मौर्य
१ जनवरी २०१९

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