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पिता के लिये
पिता को समर्पित कविताओं का संकलन
 


 

बाबू जी

जैसे नंगे पाँव चढना हिमालय पर
सहम कर पढना सोलह का पहाड़ा
कुँवारी धूप में सूरज से आँख मिलाना
छिपकर पेड़ पर चढना
वर्जनाओं को चुनौती समझ लेना
तोडना नियमों को बहाने से/
गाने गुनगुना अकेले में
बहुत बाद में समझ पाया
पिता बनकर पिता को
उनका नारियल रूप
झलकता है तस्वीर से
वो तस्वीर बन चुके हैं अब कोई वर्जना नहीं
कोई चुनौती नहीं
पर वह सब नहीं कर पाता
जो उनके रहते करना चाहता था।

- भारतेन्दु मिश्र
१५ सिंतंबर २०१४

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