1
पिता के लिये
पिता को समर्पित कविताओं का संकलन
 

 

पिता

खेत नहीं थी पिता की छाती
फिर भी उसमें थी एक साबुत दरार
बिलकुल खेत की तरह

पिता की आँखें देखना चाहती थीं हरियाली
सावन नहीं था घर के आस-पास
पिता होना चाहते थे पुजारी
खाली नहीं था दुनिया का कोई मन्दिर
पिता ने लेना चाहा संन्यास
घर नहीं था जंगल

अब पिता को नहीं आती याद कोई कहानी
रहते चुप अपनी दुनिया में
पक गए उनकी छाती के बाल
देखता हूँ....
पिता की निगाहें ढूँढती रहती हैं मेरी छाती में कुछ

पिता ने नहीं किया कोई यज्ञ
पिता नहीं थे चक्रवर्ती
कोई घोड़ा भी नहीं था उनके पास
वह काटते रहे सफ़र
हाँफते-खखारते फूँकते बीड़ी
दाबे छाती एक हाथ से
लुढ़काते रहे खड़खड़िया साइकल

पिता ने नहीं की किसी की चिरौरी
तिनके के सहारे के लिए नहीं बढ़ाया हाथ
हमारी दुनिया में सबसे ताकतवर थे पिता
वह बँधे रहे जिंदगी के जुए में
मगर टूटे नहीं
बल्कि दबते गए धरती के बहुत-बहुत भीतर
कोयला हो गए पिता

कठिन दिनों में
जब-जब जरूरत होगी हमें आग की
हम खोज निकालेंगे बीड़ी सुलगाते पिता।

- विजयशंकर चतुर्वेदी
१५ सिंतंबर २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter