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पिता के लिये
पिता को समर्पित कविताओं का संकलन
 

 

साक्षी संध्याएँ

आतीं अक्सर याद
पिता की सागर-मुद्राएँ
रहे छिपाए।

अपने भीतर
कई ज्वार-भाटे
नम या सूखी
हुई रेत पर
अपने दिन काटे
सूर्य-बिंब
डूबे उनमें ही
साक्षी-संध्याएँ

तट पर शंख
अतल में मोती-
मूँगा लिए हुए
आग और पानी
को अपने
वश में किए हुए
बड़ी गईं होतीं जुड़कर
उससे सब संज्ञाएँ

- माहेश्वर तिवारी
१५ सिंतंबर २०१४


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