कब आओगे राम

 
कब आओगे राम
दर्शन दो अभिराम

युग बीते पर तुम नहिं आए
तकते राह तुम्हारी
रामराज की आस न पूरी
होती दिखे हमारी

प्रभु तुम जैसा और न कोई
तुमसे बड़ा न नाम

लुप्त हुए आदर्श, स्वार्थ ही
पग पग पर हैं मिलते
रिश्तों की टूटी मर्यादा
अपने ही हैं छलते

सत्य-वचन की परछाई भी
बची नहीं इस धाम

विनती सुन लो तुमको ध्याएँ
दुनिया के नर नारी
आन विराजो अरि कुल नाशो
तारो विपदा सारी

पुनः अवतरित होकर आओ
ध्याएँ सुबहो-शाम

- ज्योतिर्मयी पंत  
१ अप्रैल २०१९२२ अप्रैल २०१३

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